by- Neelam Ahmad Basheer
" सुर्ख़ सेबों जैसे गालों वाले ख़ूबसूरत लड़के
तुम्हारा नाम क्या है ?
क्या कहा अब्दुल क़य्यूम ?
अरे मेरे मुन्ने का भी तो येही नाम है
वोही जो सुबह इसी रास्ते से स्कूल गया है
जिस पे तुम जैकेट पहने जा रहे हो
तुम्हें कहीं मिला तो नहीं
शुक्र है इस वक्त तक तो वोह स्कूल पोहुँच गया होगा
उस के अब्बू इस ही सड़क की
एक पुलिस चौकी पे पहरा दे रहे हैं
अब्दुल क़य्यूम उन से रोज़ गले मिल के जाता है
तुम ने उन्हें देखा तो नहीं ?
खुदारा उन्हें अपना नाम न बता देना
कहीं वोह तुम्हें भी गले से न लगा लें ।"
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यह तस्वीर मेरे बेटे की है इसलिए कॉपी राइट का कोई मसला नहीं बनता .
ReplyDeleteशीबा असलम फ़हमी
सच बहुत ही सुन्दर कविता है।
ReplyDeleteyeh sirf shayaree naheen . isme insaniyat kee khushboo samayee hai .
ReplyDeleteShukriya Rajsinh Saheb!
ReplyDeleteबहुत बेरहम है ज़माना
ReplyDeleteपंख कुतर देते है ये तो कबूतरो को उडाने से पहले
बहुत सुंदर कविता है। सादगी भली, कला से।
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