Friday, June 3, 2016

मुझे बेहद दुःख है की मुस्लिम परस्नल लॉ बोर्ड पर मेरी राय सही निकली!
अपने कई लेखों और टीवी बहसों में मैं ये बकती रही हूँ की आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुस्लमान मर्दों की खाप-पंचायत है. हरयाणा की महिलाओं पर ज़ुल्म ढाने के लिए जब समाज में खाप-पंचायतों की थू-थू हुई तो खापियों ने उनकी मानसिक ग़ुलामी कर रही महिलाओं को ही मैदान में उतार दिया ख़ुद को डिफेंड करने के लिए. खाप-समर्थक महिलाऐं मीडिया के सामने आ कर बोलीं की "खाप-पंचायतों के महिला-विरोधी फरमान दरअसल महिलाओं के फ़ायदे के लिए ही तो हैं, नारीवादी लोग हमारी लड़कियों को बिगाड़ना चाहते है."
बिलकुल यही खापिया रणनीति अपनाते हुए अब मुस्लिम-खापियों ने अपनी ग़ुलाम औरतों का विंग तैयार किया है जो मुस्लमान औरतों को ट्रिपल-तलाक, बहुपत्नी, हलाला जैसे अपराधों को ख़ुशी-ख़ुशी सहने को 'सही-इस्लाम' बताएंगी. और हम जैसे लोगों को धर्म-भ्रष्ठ। 
लेकिन मानसिक-ग़ुलामी को क़ुबूल कर चुकी इन कठपुतलियों से हमारा कोई झगड़ा नहीं. 
स्टॉकहोम सिंड्रोम का इलाज मुक्ति ही है, और कुछ नहीं !
--शीबा असलम फ़हमी 

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